बिलासपुर लोकसभा : 1952 से लेकर अब तक का सफर…

भाजपा ने 9 बार और कांग्रेस ने 8 बार दर्ज की जीत

बृजपाल सिंह हूरा✍️

तखतपुर। बिलासा नाम से 400 वर्ष पूर्व बसे शहर बिलासपुर लोकसभा सीट का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। बिलासपुर जिला वर्ष 1861 में गठित किया गया और इसके बाद वर्ष 1867 में बिलासपुर नगर पालिका का गठन किया गया। बिलासपुर लोकसभा अपने अस्तित्व में 1952 में आया। यहां की जनता भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी दूसरे को अपना समर्थन नहीं देती। इस लोकसभा सीट पर दो बार ऐसा हुआ है कि बिना पंजा और कमल निशान के सांसद चुने गए लेकिन वह भी कहीं ना कहीं इन दोनों ही पार्टियों के नेता रहे हैं। वर्ष 1952 से लेकर अब तक शुरुआती कुछ चुनाव में कांग्रेस का इस सीट पर राज रहा, तो उसके बाद लगातार भाजपा ने इस पर कब्जा जमाए रखा। तीन बार परिसीमन में आरक्षण तय हुआ। शुरू में बिलासपुर लोकसभा सीट सामान्य थी। 1980 से यह सीट आरक्षित हो गई उसके बाद 2009 से फिर से यह सीट सामान्य रही।
     भाजपा और कांग्रेस के बीच में खेल रही बिलासपुर लोकसभा सीट का परिणाम अधिकतर अवसरों पर चौंकाने वाला ही रहा है। बिलासपुर लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी, तब से लेकर आज तक कांग्रेस ने 8 बार जीत दर्ज की, तो वहीं भाजपा ने 9 बार जीत हासिल की है।
      बिलासपुर लोकसभा का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ और दूसरा 1957 में हुआ। दोनों ही बार कांग्रेस के रेशमलाल जांगड़े जीतकर संसद गए। 1962 में कांग्रेस ने निर्दलीय प्रत्याशी सत्यप्रकाश को समर्थन दिया। वे जीते और इसे पार्टी की जीत मानी गई। जनसंघ के प्रत्याशी जमुना प्रसाद को हार का मुंह देखना पड़ा। 1967 में कांग्रेस पार्टी के सरदार अमर सिंह सहगल ने जनसंघ के मदन लाल के खिलाफ करीबी अंतर से जीत दर्ज की। 1971 के चुनाव में कांग्रेस के राम गोपाल तिवारी ने जनसंघ के मनहरण लाल पांडेय को हराया। 1977 में भारतीय लोकदल ने छत्तीसगढ़ के शेर माने जाने वाले निरंजन प्रसाद केशरवानी को टिकट दी और कांग्रेस के दिग्गज अशोक राव को शिकस्त का सामना करना पड़ा। लोकदल का जनता पार्टी में विलय हुआ जिसे इस सीट को भाजपा का ही माना जाता है। 1980 तक कांग्रेस दो भागों बंट चुकी थी। कांग्रेस (आई) के गोदिल प्रसाद अनुरागी ने जीत दर्ज की। 1984 के चुनाव में पहली बार गोविंदराम मिरी के रूप में भाजपा ने बिलासपुर सीट में चुनावी राजनीति की शुरूआत की। लेकिन मिरी को कांग्रेस के खेलनराम जांगड़े के खिलाफ करारी हार झेलनी पड़ी। 1989 के चुनाव में भाजपा ने पलटवार किया और पहली बार जीत का स्वाद चखा। रेशमलाल कांग्रेस के खेलनराम को हराकर दिल्ली गए। 1991 में फिर खेलनराम व गोविंदराम मिरी आमने-सामने थे। कांग्रेस ने 1984 की जीत दोहराई। 1996 के चुनाव में भाजपा के पुन्नूलाल मोहले ने कांग्रेस की जीत का रथ रोका। गोदिल प्रसाद अनुरागी की बेटी तान्या अनुरागी को 48615 वोटों से हराकर सीट कांग्रेस से छीनकर भाजपा की झोली में डाल दी। इसके बाद 1998, 1999 और 2004 में लगातार जीत दर्ज कर उन्होंने बिलासपुर सीट में पार्टी की जमीन तैयार कर दी। 2009 में दिलीप सिंह जूदेव ने कांग्रेस की रेणु जोगी को 20081 वोटों से पराजय मिली। 2014 में अटल बिहारी वाजपेई की भतीजी करुणा शुक्ला को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाकर बिलासपुर लोकसभा से चुनाव मैदान में उतारा ।भाजपा ने भी मुकाबले में जिला पंचायत चुनाव हारे लखन लाल साहू पर दांव खेला और मोदी मैजिक में लखनलाल साहू ने एक लाख से ऊपर मतों के अंतर से करुणा शुक्ला को पराजित किया। 2019 में छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार बन गई और मुख्यमंत्री के बहुत करीबी माने जाने वाले अटल श्रीवास्तव को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाकर उतरा तो लगा कि मुकाबला कांटेदार होगा पर भाजपा के अरुण साव ने उन्हें लगभग डेढ़ लाख मतों से पराजित कर एक नया इतिहास रच दिया। माना जाता है कि मैनेजमेंट के नाम पर कांग्रेस ने इस चुनाव को बहुत अच्छे से लड़ा था।

अब तक बिलासपुर से महिला सांसद नहीं बनी

कांग्रेस ने लगातार दो बार 2009 में रेणु जोगी और 2014 में करुणा शुक्ला को प्रत्याशी बनाया पर दोनों बार इन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा। देश की आजादी के बाद अभी तक बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से कोई महिला सांसद नहीं बनी है।

जातिगत समीकरण रहता है प्रभावशाली 

बिलासपुर लोकसभा चुनाव में बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि जातिगत चुनावी समीकरण प्रभावशील रहता है। पहली बार ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने भी जातिगत समीकरण के आधार पर ही देवेंद्र यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है और अगर कांग्रेस के साथ जातिगत समीकरण का गेम चल गया तो चुनाव दिलचस्प हो सकता है।

बाहरी मुद्दा प्रभावशाली नहीं रहा है

 बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में बाहरी मुद्दा प्रभावशाली इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि 2009 में दिलीप सिंह जूदेव यहां से चुनाव लड़े हैं और छत्तीसगढ़ के दिग्गज जोगी परिवार को शिकस्त देकर परचम लहराया था।

बिलासपुर लोकसभा के रेशम लाल रहे प्रथम सांसद

बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में 1952 और 1957 में लगातार रेशम लाल जांगड़े बिलासपुर लोकसभा से सांसद रहे इसके बाद उन्होंने 1989 में बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

सबसे ज्यादा चार बार मोहले रहे सांसद 

बिलासपुर लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता पुन्नू लाल मोहले लगातार चार बार सांसद निर्वाचित होकर बिलासपुर लोकसभा की जमीन पर भाजपा को मजबूती प्रदान की
       अब देखना है 2024 में कांग्रेस के देवेंद्र यादव और भाजपा के तोखन साहू के बीच मुकाबले में जनता का झुकाव किस ओर होता है…

    
               तब तक के लिए नारायण नारायण…😊
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