कमर कस के चुनाव का इंतजार कर रहे नेताओं की हो रही कमर ढीली..

कमर कस के चुनाव का इंतजार कर रहे नेताओं की हो रही कमर ढीली..

बृजपाल सिंह हूरा..✍️

तखतपुर। विधानसभा लोकसभा चुनाव बड़े नेताओं का चुनाव माना जाता है जो अब निपट चुका है.. आने वाले समय में नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव है जिसे पार्टी कार्यकर्ताओं का चुनाव माना जाता है… कार्यकर्ता इस चुनाव के लिए कमर कसकर इंतजार करते रहे और अब इंतजार की घड़ियां है कि समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है.. कई कमर कसे कार्यकर्ताओं की अब कमर भी ढीली पड़ने लग गई है.. कार्यकर्ताओं का भी कहना है कि कार्यकर्ताओं को नेता बनाने वाले इस चुनाव में नेताजी लोग उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं जिस वजह से देर होते जा रही है। हालांकि संभावना यही जताई जा रही है कि जनवरी और फरवरी में नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को आचार संहिता का सांझा चूल्हा बनाकर निपटाया जाएगा…

तारीख पे तारीख…

फिल्म दामिनी के सनी देओल का वह संवाद तारीख पे तारीख… अब दलीय कार्यकर्ताओं में इसलिए दिख रहा है कि पिछले पंचवर्षीय चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है और अब तक के आरक्षण का ही आता पता नहीं है.. पिछले पंचवर्षीय में नगर पालिका चुनाव के लिए सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में आरक्षण हो गया था और इस बार दिसंबर आधा समाप्त होने को है और आरक्षण की ही तारीख नहीं आई है.. उसके बाद कब चुनाव की तारीख आएगी और कब फिर कार्यकर्ता चुनाव लड़कर नेता बनेंगे.. कुछ कार्यकर्ता टाइप के नेता तो कहने वालों की तारीख पे तारीख से हमारा बजट ही गड़बड़ाते जा रहा है..

     दीपावली के आसपास चुनाव देखकर हमने लोगों की जमकर दिवाली मनवा कर अपना दीवाला निकलवाया है और अब नए वर्ष के आगमन पर भी जमकर चुनावी बजट गड़बड़ाने की पूरी संभावना है। जनवरी तक अगर चुनाव नहीं निपटाया गया तो फरवरी में परीक्षाओं का सीजन आरंभ हो जाएगा.. उसके बाद फिर होली की रंग मस्ती का दौर और शादी विवाह का सीजन शुरू हो जाएगा.. ऐसे में नेता बनने को लालायित कार्यकर्ता लोग भी हताशा और डिप्रेशन के आगोश में जा सकते हैं..

जनता भी चुनाव वेलकम को अगोर रही है …

नगर पालिका और पंचायत चुनाव का इंतजार सबसे ज्यादा जनता को रहता है.. गली पारा मोहल्ला के चुनाव में 5 साल की जहां पूरी भड़ास को निकाल दिया जाता है.. वही वार्ड नेताओं को तो निचोड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाती है.. नगर पालिका और पंचायत चुनाव के कुछ स्पेशलिस्ट चुनावी लुटेरे तो नई-नई स्कीम और नए-नए आइडिया तैयार कर रहे हैं.. जिसमें गली मोहल्ले के नेताओं को कैसे ठगा और लूटा जाएगा..

बहुत आसान नहीं है डगर पनघट की..

तखतपुर नगरपालिका का चुनाव और गांव के पंचायत चुनाव को बहुत आसान मानने वाले जबरदस्त गच्चा खाएंगे क्योंकि इसमें मोदी गांधी मैजिक उतना ज्यादा प्रभावशील नहीं होता है.. यहां तो स्थानीय स्तर पर लोगों को तौल के रख देने का तराजू को जनता ने अपने अपने घरों पर लटकाया हुआ है और एक बार में ही पिछली सात पीढ़ियों का हिसाब करके ठोक बजा कर ही वोट दिया जाता है..

जमीनी स्तर के मुद्दे और खनखनाती जेबें ही करेंगी फैसला..

लोकल चुनाव जीतना उतना ही कठिन होता है जितना मुंबई में लोकल ट्रेन पकड़ना होता है… तमाम योजनाओं और विकास कार्यों को धताकर जनता निजी फायदे और लाभ को ही मुद्दा बनाती हैं और प्रत्याशी द्वारा दिए और किए जा रहे व्यवहार के वजन को भी तौला जाता है.. अंत में फिर खनखनाती जेबों के बोलते पैसे के वजन का तड़का लगने के बाद ही चाल चरित्र और चेहरा और भविष्य में यह हमारे लिए कितने फायदेमंद साबित होंगे तब जाकर जनता के दरबार की परीक्षा में प्रत्याशी उत्तीर्ण हो पाता है…

       अब देखना यह है कि तमाम स्थानीय चुनाव को पूरे ताम झाम के साथ फेस करने की तैयारी करें लोगों के सपने किस हद तक पूरे हो पाते हैं…

         तब तक के लिए नारायण नारायण….😊

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