सीधे मुकाबले में क्या समीकरण बनेगा..? क्या पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त होंगे या नई इबारत लिखी जाएगी

सीधे मुकाबले में क्या समीकरण बनेगा..? क्या पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त होंगे या नई इबारत लिखी जाएगी…?

तखतपुर (बृजपाल & ललित) चुनाव का डमरू बजते ही जहां सारे के सारे चुनावी मदारी खेल तमाशा मंच पर जमूरे जोक्कड़ बेंदरा आदि का तमाशा आरंभ करने का शोर आरंभ कर दिए है… वही तखतपुर विधानसभा के आरंभिक फ्लैश बैक में जाए तो प्रथम मुकाबला 1951 में कांग्रेस और राम राज्य परिषद के बीच में हुआ था जिस वक्त तखतपुर विधानसभा कुल मतदाताओं की संख्या 50 हजार 227 थी जिसमें से मात्र 16 हजार 166 मतदाताओं ने अपने मतों का प्रयोग किया जिसमें कांग्रेस के चंद्रभूषण सिंह को 6652 एवं राम राज्य परिषद के बापूजी को 2017 वोट मिले..!

तखतपुर विधानसभा चुनाव के अब तक के आखिरी विधानसभा चुनाव में 2018 में 30.51 प्रतिशत के साथ 52616 वोट पाकर रश्मि सिंह ने जीत हासिल की। दूसरे स्थान पर रहने वाले जकांछ संतोष कौशिक ने 49625 एवं भाजपा हर्षिता पांडेय ने 45622 मत प्राप्त किया पर 1951 से लेकर 2018 तक के इस सफर में सन् 1990 की जीत का रिकॉर्ड अब तक सर्वोच्च प्रतिशत आंकड़ों में है। 

       

 1951 से लेकर 2018 तक हुए चुनाव में कई उतार-चढ़ाव और कई चेहरों के रंग चढ़कर उतरते देखें लेकिन 1990 में भाजपा की जीत तखतपुर विधानसभा क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी इसलिए मानी जा सकती है कि भाजपा के मनहरण लाल पांडेय ने इस चुनाव में लगभग 52 प्रतिशत मत हासिल कर उस दौर में लगभग साढ़े 11 हजार के मतों की एक बड़ी जीत हासिल की थी जो कि आज भी प्रतिशत और आंकड़ों में सर्वाधिक ही बनी हुई है.. यह रिकॉर्ड कब तक बना रहेगा इस पर तो अभी भविष्य के कदमों की आहट का पर्दा पड़ा हुआ है लेकिन यही एक चुनाव था जिसके बाद त्रिकोणीय चुनाव का तखतपुर में शंखनाद हुआ..

         जिसमें 2003 के एक अपवाद को छोड़ दे तो (जिसमें कांग्रेस को अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली) त्रिकोणीय मुकाबला ने अक्सर भाजपा की जीत का आधार रखा है। ऐसे में फिलहाल तक जो स्थिति दिख रही है उसमें फिर भाजपा कांग्रेस के मध्य ही सीधे संघर्ष की स्थिति है ऐसे में देखना यह है कि कांग्रेस इसका कितना लाभ उठाने में कामयाब हो सकती है…
 क्योंकि 1993, 1998, 2008, 2013 में भाजपा की जीत में कहीं ना कहीं त्रिकोणीय, बहुकोणीय मुकाबला का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस मुकाबले में कांग्रेस के एक वर्ग विशेष के वोट बंट जाते थे और भाजपा चुनाव जीतने में कामयाब हो जाती थी। 

         2013 में जब कहा जाता था कि सबसे पहले भाजपा अगर कहीं हार रही है तो वह तखतपुर सीट है और परिणाम ने लोगों को चौंका दिया। जब भाजपा यहां से 608 वोट से जीत गई। भाजपा प्रत्याशी राजू सिंह के विरोध का वातावरण अवश्य था किंतु उसके विरोध के मतों का विभाजन इतनी बड़ी संख्या में हुआ कि भाजपा अपने शुद्ध वोटो को लेकर चुनाव जीत गई। भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया, शिवसेना को वोट दिया, बसपा को दिया, निर्दलीय शिवा माली को वोट दिया। जिस वजह से भाजपा के खिलाफ पड़ने वाले वोट एक जगह एकत्र नहीं हो पाए।

           ठीक इसके विपरीत स्थिति 2003 में बनी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तखतपुर बसपा प्रत्याशी शंकर माली को लड़ने से रोक दिया और स्व. बलराम सिंह कांग्रेस, जगजीत सिंह मक्कड़ भाजपा के मध्य सीधा मुकाबला हुआ जिसमें कांग्रेस को लगभग साढ़े 6 हजार मतों की निर्णायक बढ़त मिली। जो अब तक के तखतपुर के इतिहास में कांग्रेस को आंकड़ों में मिलने वाली सबसे बड़ी जीत है।

         

        अब जबकि विधानसभा चुनाव 2023 के कुरुक्षेत्र किले के पट खुल चुके हैं और मैदान में हू तू तू की हुंकार के साथ ताल ठोंके जाने का क्रम आरंभ हो गया है.. वहीं लोगों में यह जिज्ञासा भी बन रही है कि छत्तीसगढ़ के हाई प्रोफाइल सीट माने जाने वाले तखतपुर का परिणाम किन-किन आधारों पर प्रभावित होगा..

      दलीय आस्था निष्ठा के वोट तो अपनी-अपनी जगह सुरक्षित है किंतु प्रत्याशी के व्यतिगत व्यक्तित्व पर्सनालिटी का भी इस विधानसभा चुनाव में हमेशा से महत्व रहा है तो साथ ही साथ चुनावी समीकरणों और चाणक्य नीति रणनीतिकारों की भूमिकाओं ने भी समय-समय पर परिणाम की तस्वीर को बदलने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है..।
        अब जबकि 2023 का विधानसभा चुनाव दहलीज के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है तो इस पर नजर डाले तो इसमें कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 43 हजार 418 है। जिसमें 1 लाख 23 हजार 373 पुरुष, 1 लाख 20 हजार 039 महिला मतदाता है।

         अब देखना यह है कि दो ठाकुर समाज परिवारों के मध्य होने वाले सीधे मुकाबले में क्या तीसरा कोण भी बनेगा और उसकी भी चुनाव परिणाम में कोई भूमिका रहेगी..?
         तब तक के लिए नारायण नारायण…😊
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