हाथों में चांद और सूरज लेकर चल रहे कामयाबी के रफ्तार को मिलेगी कौन सी मंजिल…?
जन्मदिन के साए में अनजाने में ही सही पर उभर आया है एक सियासी सितारा..
बृजपाल सिंह हूरा..✍️

तखतपुर। जन्मदिन की हाई टी कब हाई फाई प्रोफाइल बनकर तखतपुर क्षेत्र की राजनीति में एक शख्सियत को उड़ा कर जिस तेजी और तूफानी गति से तखतपुर राजनीति के सियासी अंबर पर सतरंगी इंद्रधनुष की भांति सजा दिया.. इसका अनुमान तो शायद ही किसी को रहा होगा क्योंकि सुबह से आरंभ जन्मदिन का आयोजन शाम ढलते ढलते एक हाई प्रोफाइल सियासी रंगीन फिज़ा में बदल गई…

जमीन का साधारण सा लगने वाला सितारा आसमान का ध्रुव तारा सा बन गया। सियासत पर पारखी और तीक्ष्ण नजर रखने वालों ने इसे एक लंबी पारी की शुरुआत की उपाधि भी देने से नहीं चुके..

जिस तरह से जन्मदिन की साधारण से लगने वाली पार्टी एक ग्रैंड मेगा हिट फिल्म की तरह बन गई और लोगों को तनिक भी अनुमान नहीं लगा कि साधारण से बजट पर बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस के अगले पिछले सारे रिकॉर्ड को तोड़ते हुए पहले ही शो में धूम मचा देगी…

हम बात कर रहे हैं प्रेस क्लब अध्यक्ष वरुण सिंह के जन्मदिन पार्टी की.. जहां एक भुजा सियासी वजन से फड़क रही थी तो दूसरी ओर प्रशासनिक दक्षता की कुशलता भी साबित और सिद्ध हुई है।

इस पार्टी आयोजन को प्रायोजित प्रोग्राम की संज्ञा इसलिए भी नहीं दी जा सकती है क्योंकि यह आयोजन बहुत ही साधारण ढंग से आरंभ किया गया था.. वह तो आगंतुकों की संख्या और उनके वजनदार व्यक्तित्व ने बर्थडे की हाई टी को पूरे आन बान और शान के साथ हाथों-हाथ उठाकर कहीं ना कहीं यह साबित कर दिया कि बर्थडे बॉय का शासनिक और प्रशासनिक वजन अब किसी अतिरिक्त विटामिन प्रोटीन का तलबगार नहीं रहा..

इस पूरे विषय को दो लाइन में अगर कहूं तो एक मशहूर शायर की शायरी याद आ जाती है
मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर..
लोग साथ आते गए और कारवां बढ़ता गया…

यह एक ऐसा सच का आईना है जिसे कई लोग देखना और स्वीकारना भी पसंद नहीं करते.. दरअसल जिन लोगों को आज का सुहाने दिन दिख रहा है वे पर्दे के पीछे के उस दर्द हिकारत तन्हाई तकलीफ छालों.. को नहीं देखे हैं, जिससे गुजर कर ही यह फूलों की कालीन प्राप्त हुई है…

तस्तरी में रखकर परोसी गई ये कोई एक दिन की मेहनत नहीं है.. यह तो संघर्ष की वह दास्तां है जिसे कुछ लोग देखना और समझना भी नहीं चाहते हैं… खैर लेखक का तो यही मंतव्य है कि अब यह रफ्तार किसी के रोके भी रुक जाए ऐसा फिलहाल तो संभव नहीं दिख रहा है और निरंतर आगे बढ़ने की दुआओं के साथ..

अब तो यही देखना है कि फर्श से अर्श तक के इस सफर में चांद और सूरज को हाथों में लेकर चलने वाले ये “नए साहब जी”, अपनी कामयाबी के रथ को किस मुकाम तक ले जा पाएंगे..
तब तक के लिए नारायण नारायण…😊


