अदभुत सुरों का कभी न भुलाए जाने वाला संगम…

अदभुत सुरों का कभी न भुलाए जाने वाला संगम…

महान गायक कलाकारों के सुरीले गीतों की नायब प्रस्तुतियां…

सुर संगम द्वारा गीत संगीत डांस मस्ती की यादगार शाम का आयोजन

बृजपाल सिंह हूरा…✍️


तखतपुर। सुर संगम नाम का कार्यक्रम दरअसल अद्भुत सुरों का संगम कार्यक्रम था… जिसमें रफी साहब मुकेश जी किशोर दा एसपी बालासुब्रमण्यम जी आदि जैसे महान गायकों के यादगार गीतों के अलावा कुमार सानू उदित नारायण आदि के यादगार सुरीले नगमो के साथ-साथ पंकज उधास जगजीत सिंह जी की कुछ यादगार गजलों का दौर भी चला और सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया की तर्ज पर छत्तीसगढ़ी गीतों की माटी की महक ने भी संगीत प्रेमियों की महफिल को अपने रंग से भर दिया…

            जी हां…! सुर संगम तखतपुर के संयोजकत्व में आयोजित गीत संगीत डांस मस्ती आनंद में डूबी एक यादगार शाम का दौर चला जिसमें छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश से भी गीत सुरों तरानों के शौकीनों और प्रेमियों ने एक मित्र मंडली का स्वरूप धारण कर अपने इस आयोजन का बीती शाम में पांचवां चरण पूरा किया.. जिसमें ढलती शाम की लालिमा की मद्धिम रोशनी के साए में आरंभ आयोजन गुजरती रात के टिमटिमाते तारों को साक्षात गवाह बनाकर वो यादगार शमां बांधा गया कि संगीत के हर तरन्नुम की खनक दिल की हर धड़कन और जेहन की दहलीज में खड़े होकर वर्षो अपने हर एक खुशनुमा पलों की यादों की दस्तक देते रहेंगे…

         पल बीत जाएंगे.. दिन भी करवट ले लेंगे… महीनो की सुबह हो जाएगी और साल की शाम भी ढल जाएगी पर.. वह पल भी सभी साथी नही भूल पाएंगे जब सूर्यकांत शर्मा जी ने हर एक गीत ही नहीं हर एक बोल हर एक अंतरे पर अपनी सुरीली और चिर परिचित तुकबंदी माहौल को खुशनुमा बनाया…

        रविंद्र तिवारी जी की समीक्षा ने मानो गाने वालों के प्रयास को सार्थकता की ऊंचाई तक ले गया…. जनाब उमर कुरैशी जी की शेरो शायरी और नजाकत भरे संचालन के बगैर तो इस कार्यक्रम की कल्पना ही नहीं की जा सकती है… और सभी मोतियों को एक धागे में पिरोकर खूबसूरत माला के रूप में तैयार करने के लिए परवेज भारमल जी का प्रयास उस सुपरहिट फिल्म के डायरेक्टर की तरह होता है जो सभी कलाकारों को एक जीवंत किरदार का स्वरूप देकर खुद पर्दे के पीछे रहता है…

   अतुल केशरवानी जी के नृत्य का अगर जिक्र ना हो तो लगेगा कि इस कार्यक्रम से जैसे आत्मा ही निकाल ली गई है.. अदभुत निपुण गायकी और नृत्य के धनी अतुल केशरवानी जी सही मायनों में आयोजन के आंख, कान और नाक है…

         योगानंद जी जब गाने के लिए मंच पर आते हैं तो कानों को विश्वास ही नहीं होता है रफी साहब का रिकॉर्ड सुन रहे हैं या साक्षात योगानंद जी गा रहे हैं…

      इसी क्रम में मुन्ना श्रीवास जी डॉ निखिलेश गुप्ता, परमेंद्र रजक, अजय चौरसिया, बृजपाल सिंह हूरा, प्रभु दास नत्थानी, जितेंद्र सिंह हूरा, रमेश प्रधान, प्रभाकर तिवारी, कृष्णा तिवारी, नरेश साहू, चरणपाल मक्कड़, संजीव श्रीवास, डॉ. शरद कुर्रे, डॉ. मनोज राज, प्रेम तिवारी, ऋषि पुरी गोस्वामी, परमेंद्र रजक आदि की एक से बढ़कर एक प्रस्तुति ने आयोजन समिति और संचालक मंडल को सोचने पर मजबूर कर दिया कि इससे पहले का कौन सा गीत श्रेष्ठ था और कौन सा श्रेष्ठ अभी बाकी रह गया है…


     कुछ ऐसे भी मित्र साथी होते हैं जो मंच पर तो नहीं आते हैं पर इनके बिना इस उत्सव की कल्पना भी नहीं की जा सकती जिनमे आशीष सग्गर, संतोष क्षत्री, संजीत मिश्रा जैसे कई नाम और चेहरे हैं जिनका इस महफिल पर कदम रख देना ही मानो सातों सुरों को एक साथ झनझनवा देना होता है।

       अलग अलग क्षेत्र से आना.. आपस में मिलना साथ गाना नाचना खाना पीना मस्ती आनंद खुशियों हंगामा का ऐसा तूफान मानो जिंदगी भी यहां थमकर जैसे इस सुहाने पल से अपने लिए कुछ खुशियां उधार मांग रही हो…
         आनंद का यह दौर चलता रहा है और चलता रहेगा.. आने वाले समय में शायद खुशियां मस्ती और भी बढ़ जाए…
      तब तक के लिए नारायण नारायण….😊

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