बसपा प्रत्याशी मोहन मिश्रा का जातीय ध्रुवीकरण त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति की ओर बढ़ रहा है
तखतपुर बहुजन समाज पार्टी धीरे गति से आरंभ होकर अब जहां स्पीड बढ़ाई है, वही इसके बढ़ते प्रभाव से चुनावी दिग्गजों का कही समीकरण ना बिगड़ जाए? इस पर रणनीतिकारों के विचार और मंथन का दौर आरंभ हो गया है क्योंकि जब कोई आंधी चलती है तो उसके चपेट में आने वाले कौन उसके सगे संबंधी हैं और कौन दुश्मन यह उसे पता नहीं चलता है.. वैसे भी दो ठाकुर परिवारों के बीच एक ब्राह्मण कहीं नारायण नारायण करके निकल गया तो कहीं लेने के देने ना पड़ जाए…
बहुजन समाज पार्टी का तखतपुर में प्रभाव नहीं है यह कहना ही राजनीति में सबसे बड़ी नासमझी वाली बात होगी.. बहुजन समाज पार्टी का सबसे बड़ा प्रभाव 1993 में देखा गया था जब शंकर माली कांग्रेस प्रत्याशी चित्रकांत जायसवाल से मात्र 2000 मतों से पीछे थे… 1996 के उप चुनाव में तो बहुजन समाज पार्टी जीत के मुहाने से वापस लौटी थी… 2008 और 2013 में जीतने की स्थिति में जाकर वापस लौटी बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस के भी तोते उड़ा दिए थे…
अब जबकि बहुजन समाज पार्टी ने ब्राह्मण समाज के प्रत्याशी मोहन मिश्रा पर अपना दांव खेला है तो रणनीतिक तौर पर यह दांव कही सही निशाने पर लग गया तो परिणाम चौकाने वाले भी हो सकते हैं.. बहुजन समाज पार्टी के मोहन मिश्रा का कहना है कि उनका अंडर करंट जबरदस्त चल रहा है और उनके सामाजिक वोटो का ध्रुवीकरण अगर उनके पक्ष में फैसला ले लिया तो त्रिकोणीय संघर्ष में कोई भी बुलक सकता है
बीते कुछ दिनों से बहुजन समाज पार्टी के मोहन मिश्रा सकरी वाले की गति तेज हुई है और एक तीसरी शक्ति के रूप में उसे लोग गंभीरता से ले रहे हैं… वह इसलिए भी दिखता है कि बहुजन समाज पार्टी का हाथी छाप लोगों के लिए कोई अनजान चुनाव चिन्ह नहीं है.. तखतपुर नगरपालिका चुनाव में ही बसपा के हाथी छाप ने कांग्रेस के पंजा और भाजपा की कमल को करारी शिकस्त दे चुका है.. तो ऐसे में बसपा के मोहन मिश्रा के हाथी को कमजोर समझना एक बड़ी भूल साबित हो सकती है..
अब देखना यह है कि बसपा का हाथी, पंजा और कमल के बीच में तीसरे विकल्प के रूप में दीवार बनकर खड़ा होता है या फिर उनका समीकरण को बिगाड़ता है..