गांव बसा नहीं, लुटेरे पहले आ गए..
राजनीति में ऊंट किस करवट बैठेगा यह आमतौर पर बोलचाल की भाषा रहती है… अब ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो नहीं कहा जा सकता पर राजनीति के मठाधीश और महापुरुष लोग आने वाले दिनों में किस करवट बैठेंगे उसकी पोजीशन और स्थान तय करने के लिए निर्धारण कार्य आरंभ हो चुका है.. सूत्रों की माने तो 3 दिसंबर के संभावित रिजल्ट को लेकर भावी रणनीतियां दिखने लग पड़ी है.. रिजल्ट के बाद किसकी भूमिका आगे रहेगी.. कौन पीछे रहेगा.. कौन कछुआ चाल से आगे बढ़ेगा.. कौन खरगोश की तरह दौड़ पड़ेगा.. यह देखकर टंगड़ी मारने और रेस टिप के साथ लंगडी चाल चलने का खेल आरंभ हो गया है.. जिसके चलते कहीं यह आगे ना निकल जाए ये सोचकर उसका बोरिया बिस्तर पहले ही समेंटने की तैयारी है… मतलब अभी यही कहा जा सकता है कि गांव अभी बसा नहीं है पर लुटेरे पहले से आ गए हैं…😅
आधे इधर जाओ.. आधे उधर जाओ..
विधानसभा चुनाव के बाद अब परिणाम का इंतजार नेताओं से बर्दाश्त नहीं हो रहा है जिसके लिए जो मिलता है उसे एक ही बात होती है.. तुम्हारा समाज कैसा रहा? तुम्हारा वार्ड कैसा रहा? तुम्हारा गांव कैसा रहा? इन सब से भी चैन नहीं मिल रहा है तो अब तो गांव-गांव में आदमी दौड़ाए जा रहे हैं.. आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ और जैसे भी हो ऐसी खबर सुनाओ की जिससे लगे कि पिस्तौल जेल में आ चुका है…! मतदाता भी नेताओं से बढ़कर होशियार हो गए.. जैसा चेहरा देख रहे हैं वैसा चंदन लगा रहे.. जिससे एग्जिट पोल के भी चारों खाने चित्त होने की पूरी संभावना है। जिस गांव से भी कोई आदमी आ रहा है लोग उसे शहर में पकड़ कर ऐसे बैठ जाते हैं जैसे वो ईवीएम मशीन हो और बस अब गांव में पड़े वोटो को उगल के रख देगा… वैसे भी इन दिनों गांव से शहर आने वाले लोगों से पहला सवाल यही रहता है कि तुम्हारे गांव का माहौल कैसा है और किसके पक्ष में रहेगा..? गांव वाले भी होशियार है पहले ही ताड़ लिए रहते हैं की अगला आदमी किस पार्टी की जीत चाह रहा है.. बस घुमा फिरा के उसको खुश कर देते हैं..😅
सुख भर दिन बीते रे भईया…
चुनावी धूम धड़ाका मान मनौव्वल, पूछ परख, मालपानी अंदर, कुकरा चेपटी बाहर वाला चुनावी त्यौहार अब खत्म हो गया है। अगर आदमी सोच रहा होगा कि 3 दिसंबर परिणाम के बाद फिर से वही त्यौहार और वही पूछ परख होगी तो वह सबसे बड़े मुगालते में है। अब तो 5 साल तक के लिए नेताजी लोगों के दिन फिर से शुरू हो गए हैं। चुनाव हार भी गए तो भी छाया प्रतिछाया बनकर छाए रहेंगे और जीत गए तो अब तो भीड़ बुलाने के लिए खर्च भी नहीं करना पड़ेगा। अब तो रैली जुलूस में शामिल होने के लिए खुद से खर्च करके लोग शामिल होंगे। अब इस भ्रम को निकाल दो कि फिर ऐसा कोई बड़ा त्यौहार आएगा क्योंकि 5 महीने बाद तो मोदी मैजिक वाला चुनाव रहेगा। जिसमें सारे सारे राजनैतिक जादूगर मेंड्रेक, जादूगर के. लाल, जादूगर आनंद आदि के जादू तो फेल हो जाते है और ऋण माफी बोनस वालों को भी मोदी के मन की बात सुनाई देने लगने पड़ जाती है… और नगरीय निकाय पंचायत चुनाव में तो जिन्होंने विधानसभाई नेताओं की तिजोरी में जितना जमकर झाड़ू लगाया रहता है.. उनके लिए अब अपनी जेबें खाली करने का वक़्त आ गया रहता है।
चाय से ज्यादा केतली गरम…
आज की राजनीति में हाई क्लास नेताजी कुछ बोले कि ना बोले पर लो क्लास के कार्यकर्ता भड़भड़ा के ऐसा बात करेंगे जैसे यह ही विधायक और सांसद बनेंगे और विधानसभा में इन्हीं की ही चलेगी…😅 ऐसा ही कुछ परिदृश्य तखतपुर विधानसभा में दिख रहा है… नेताजी लोग मतदान करा के मतगणना के इंतजार में फूल आराम फरमा रहे हैं लेकिन चवन्नी चिल्हर छाप नेतागिरी वाले लोग तो मानो ऐसी बातें कर रहे हैं जैसे चुनाव वही जीत रहे हैं… और यही लोग लाल बत्ती में भी घूमेंगे… घंटा🔔 अब ये सब देखकर लोगों का तो यही स्वर फूट रहा है कि वाह जी वाह..! यहां तो चाय से ज्यादा केतली गर्म है…😅
सवाल आपसे…?
👉 3 दिसंबर चुनाव परिणाम के पहले ही किस-किस को रात्रि के सपने में फिल्म खून भरी मांग की तरह घोड़े में हंटर लेकर दौड़ते आती हुई रेखा दिखाई पड़ रही है…😅