तखतपुर वालों ने दल को नहीं, चेहरे को देखकर दिया हमेशा वोट

तखतपुर वालों ने दल को नहीं, चेहरे को देखकर दिया हमेशा वोट
सर्वाधिक बार मनहरण लाल पांडेय 7 बार तखतपुर विधानसभा चुनाव लड़े… जिसमें सर्वाधिक 5 बार मनहरण लाल पांडेय विधायक का चुनाव जीते


(बृजपाल & ललित)  तखतपुर विधानसभा क्षेत्र वासियों ने दल को नहीं चेहरे को देखकर दिया हमेशा वोट.. तभी तो स्थाई रूप से कहा नहीं जा सकता कि यह सीट भाजपा खाते में जाएगी या कांग्रेस के…?
     देश की आजादी के बाद तखतपुर विधानसभा क्षेत्र में 15 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। जिसमें 8 बार भारतीय जनता पार्टी (जनसंघ दिया छाप, जनता पार्टी हलधर किसान छाप सहित) एवं 7 बार कांग्रेस (बैल जोड़ी, गाय बछड़ा, पंजा छाप) ने जीत का सेहरा बांधा है।
     तखतपुर विधानसभा क्षेत्र में आठ बार जहां बीजेपी जीती है। वही दो बार वह तीसरे स्थान पर भी गई और दोनों ही बार कांग्रेस जीती है। जबकि एक बार बहुजन समाज पार्टी और एक बार जोगी कांग्रेस दूसरे स्थान पर रहे है।
    तखतपुर विधानसभा क्षेत्र 1951 में अपनी अस्तित्व में आया जिसमें कांग्रेस के चंद्र भूषण सिंह तखतपुर विधानसभा क्षेत्र के पहले विधायक बने। उसके बाद विधानसभा का अस्तित्व नहीं रहा और एक बार फिर से 1962 में कांग्रेस के मुरलीधर मिश्र विधायक बने। 

       कांग्रेस के जगमगाते युग में 1967 में मनहरण लाल पांडेय ने “दिया” जलाकर अविभाजित मध्य प्रदेश की राजनीति में जबरदस्त धमाका किया और युवा मनहरण लाल पांडेय की तखतपुर विधानसभा क्षेत्र में विधायक के रूप में एंट्री हुई। 

     

       1972 में कांग्रेस ने रोहिणी कुमार बाजपेई को टिकट दी और उन्होंने मनहरण लाल पांडेय को शिकस्त देकर एक बार फिर से कांग्रेस का झंडा ऊंचा किया। 1977 में हलधर किसान जनता पार्टी से मनहरण लाल पांडेय और विधायक रोहिणी कुमार बाजपेई के बीच मुकाबला हुआ। जिसमें इस बार मनहरण लाल पांडेय ने जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। मनहरण लाल पांडेय अभिभाजित मध्य प्रदेश में मंत्री पद का गौरव भी हासिल किया।

सरकार भंग होने पर 1980 में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस ने स्थानीय प्रत्याशी के रूप में ताहेर भाई वनक पर अपना दांव खेला और वे पार्टी के उम्मीद पर खरे उतरते हुए मनहरण लाल पांडेय को शिकस्त देकर फिर से कांग्रेस का परचम लहराया।
         1985 इंदिरा लहर में मनहरण लाल पांडेय की यह जीत बहुत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने कांग्रेस के हफिज मोहम्मद को करारी शिकस्त दी। 1990 में मनहरण लाल पांडेय का मुकाबला कांग्रेस की अंजना मुल्कलवार से हुआ इस बार भी मनहरण लाल पांडेय ने भाजपा का कमल खिलाकर एक नया इतिहास रच दिया लगातार दो बार में पहली दफा चुनाव जीते। 1993 में पटवा सरकार भंग होने के बाद चुनाव में भाजपा के मनहरण लाल पांडेय के खिलाफ कांग्रेस ने अविभाजित मध्य प्रदेश में मंत्री रहे चित्रकांत जायसवाल को चुनाव मैदान में उतारा और उन्हें भी करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में इन्हें बहुत कम मत मिले। निर्दलीय के रूप में अंजना मुल्कलवार ने कार छाप में खड़े होकर कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ दिया। 1993 के इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से पहली बार शंकर वाली चुनाव मैदान में उतरे और 13000 से ऊपर मत पाकर कांग्रेस से लगभग 2 हजार मतों के अंतर पर ही पीछे रहकर जहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई वहीं जबरदस्त राजनीतिक धमाका किया। मनहरण लाल पांडेय लगातार इस तीसरी जीत के साथ हैट्रिक मारने में कामयाब रहे।

 तखतपुर से कुल 5 बार विधायक बन चुके मनहरण लाल पांडेय को भारतीय जनता पार्टी ने जांजगीर से सांसद की टिकट दी और वे वहां चुनाव जीत गए। जिस वजह से 1996 में तखतपुर विधानसभा चुनाव में उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस से ठाकुर बलराम सिंह, भारतीय जनता पार्टी से छेदी सिंह एवं बहुजन समाज पार्टी से शंकर माली के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। आश्चर्यजनक रूप से भारतीय जनता पार्टी तीसरे स्थान पर चली गई और ठाकुर बलराम सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे। बसपा के शंकर माली का उनके राजनीतिक कैरियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा और वे जीत की दहलीज से चंद कदम दूर रहकर दूसरे स्थान पर रहे। 

1998 में भारतीय जनता पार्टी ने जगजीत सिंह मक्कड़ को प्रत्याशी बनाया यहां एक बार फिर त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। जिसमें जगजीत सिंह मक्कड़ ने बलराम सिंह को मात्र 145 मतों की करारी शिकस्त देकर भारतीय जनता पार्टी को तीसरे स्थान से पहले स्थान पर लाया। वही शंकर माली एक बार फिर से तीसरे स्थान पर चले गए। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में टंगिया छाप से लड़े हर प्रसाद कौशिक ने लगभग 7 हजार वोट पाकर चुनावी समीकरण को गड्डमड्ड कर दिया था। 

2003 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार चुनाव हुआ शंकर माली मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कहने पर कांग्रेस में शामिल हो गए और बलराम सिंह ठाकुर इस चुनाव में 6000 से ज्यादा मतों से भाजपा की जगजीत सिंह मक्कड़ को पराजित किया। 
   

2008 में भाजपा ने राजू सिंह को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने बलराम सिंह को पराजित किया। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से संतोष कौशिक गुरुजी पहली बार चुनाव लड़ते हुए लगभग 20 हजार वोट पाकर क्षेत्र में जबरदस्त दस्तक दी। 

2013 में कांग्रेस ने आशीष सिंह ठाकुर को अपना प्रत्याशी बनाया और उनका मुकाबला भाजपा विधायक राजू सिंह से हुआ जहां राजू सिंह 608 वोटो से चुनाव जीतकर सारी समीकरण को तहस नहस कर दिया। त्रिकोणीय मुकाबले में संतोष कौशिक ने लगभग 30 हजार मतों के साथ अपनी फिर दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। पूर्व विधायक जगजीत सिंह मक्कड़ शिवसेना से चुनाव लड़कर लगभग 10000 मत प्राप्त किए। 

2018 में कांग्रेस ने रश्मि आशीष सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया तो भारतीय जनता पार्टी ने हर्षिता पांडेय को टिकट दी। अजीत जोगी नई पार्टी बना लिए जिसमें उनके प्रत्याशी संतोष कौशिक रहे। 

संघर्षपूर्ण त्रिकोणीय मुकाबले में 52616 मत पाकर कांग्रेस की रश्मि आशीष सिंह जहां फतह हासिल की। वही जोगी कांग्रेस के संतोष कौशिक 49625 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे और भाजपा की हर्षिता पांडेय 45622 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रही। 



     अब एक बार फिर से जब चुनावी शंखनाद के साथ घमासान रणभेंदिया गूंजने लग पड़ी है तो माना जा रहा है कि इस बार का चुनाव और भी जबरदस्त और रोचक रहेगा। 1993 से त्रिकोणीय संघर्ष का दौर शायद इस बार विराम की स्थिति में आ जाए और संभावना है कि भाजपा और कांग्रेस के मध्य सीधे-सीधे ही दो-दो हाथ होंगे…
                 तब तक के लिए नारायण नारायण…😊
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